ये अच्छी बात है की बिहार सम्राट अशोक को अपना रहा है। भले ही राजनीतिक और जातिगत लाभ से जोड़कर ही सही लेकिन राजनीतिक दल बिहार में अशोक की चर्चा तो कर रहे हैं। सीता, बुद्ध, महावीर, गुरु गोविंद सिंह के बाद अशोक बिहार के सबसे बड़े “एक्सपोर्ट” हैं। ये बिहार का दुर्भाग्य है की बिहार ना तो कभी इन तीनों के महत्व को अपने सौभाग्य के लिए ग्लोबली यूटिलाइज कर सका और ना ही अशोक को।
पूरे देश से लोग अयोध्या जाते हैं रामजन्मभूमि की धार्मिक तीर्थयात्रा हेतु, लेकिन जगत जननी मिथिलेश कुमारी सीता की जन्मभूमि सीतामढ़ी शायद ही कोई आता है। क्योंकि बहुत कम लोग जानते हैं की सीता का प्रागट्य स्थल सीतामढ़ी के पुनौराधाम में है, अधिकांश नेपाल समझते हैं। यदि सरकार द्वारा ध्यान दिया गया होता तो धार्मिक पर्यटन और तीर्थ हेतु देशभर से करोड़ों लोग सीतामढ़ी आते, लाखों लाखों को रोजगार मिलता।
पुरे दुनिया में बुद्धिज्म चौथा सबसे बड़ा धर्म है, 50 करोड़ से अधिक लोग इसे मानते हैं। सऊदी अरब इस्लाम के केंद्र के रूप में पूरे इस्लामिक दुनिया को डोमिनेट करता है, वेटिकन सहित रोम ने क्रिश्चियनिटी को पर्यटन, तीर्थ, प्रसार का माध्यम बनाया हुआ है। यदि सरकार ने ध्यान दिया होता तो चीन, श्रीलंका, म्यांमार, जापान, थाईलैंड सहित सम्पूर्ण पूर्वी एशियाई देश के बौद्ध लोगों के लिए बिहार उसी तरह का तीर्थ होता जहां हर साल करोड़ों लोग बुद्ध से जुड़े जगहों का दर्शन करने आते। ना केवल बुद्ध बल्कि महावीर के जन्मस्थान वैशाली सहित उनसे जुड़े तीर्थ स्थलों पर संपूर्ण भारत से जैन धर्मावलंबी आते। गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली पटना साहिब पर पूरे विश्व के सिक्ख धर्मावलंबी अपनी आस्था लुटाते। लेकिन चूंकि बिहार ने कभी अपने इन नायकों को ग्लोबल पर्सपेक्टिव से देखा ही नहीं, कभी इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं दिया इसलिए सब जस का तस है।
अशोक भारतीय इतिहास के सबसे महान सम्राट माने जाते हैं जिन्होंने ना केवल साम्राज्य विस्तार बल्कि राजकाज प्रणाली सहित बौद्ध धर्म के प्रसार में भी सबसे महती भूमिका निभाई। लेकिन पश्चिमी जगत सिकंदर और चंगेज खान की गाथा गाता है क्योंकि वहां लोग बहुत कम जानते हैं अशोक के बारे में। अशोक के महानता और के सामने सिकंदर की विजय बहुत छोटी थी, सफलातों और प्रसार के मामले में अशोक चंगेज से भी बीस पड़ते हैं।
Nice writing