मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड :
मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड सम्बन्धी कई प्रश्न और कन्फ्यूजन लोगों के मन में था और है, उन सभी संभावित प्रश्नों के उत्तर देने की कोशिश की है, लेख लम्बा है और बहुत मेंहनत लगा है तैयार करने में पर पूरा पढ़ने के बाद आप “मुझे चाहिए मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड” जरूर बोलेंगे।
प्रश्न: डेवलपमेंट बोर्ड क्या है ?
उत्तर:- सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड किसी क्षेत्र विशेष के लिए बनाया गया ऐसा संवैधानिक तंत्र है जो एक राज्य के अंतर्गत आने के बावजूद उस क्षेत्र विशेष के विकास कार्यों से सम्बंधित प्रोजेक्ट्स बना सके और काम कर सके। जैसे की गुजरात-महाराष्ट्र में तीन-तीन सेपरेट डेव्लपमेंट बोर्ड हैं, विदर्भ-मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र, गुजरात में कच्छ-सौराष्ट्र और शेष गुजरात। ये सभी डेवलपमेंट बोर्ड राज्य के प्रशासन में बिना इंटरफेयर किए उस क्षेत्र के विकास से सम्बंधित कार्य करती है। यदि मिथिला में डेवलपमेंट बोर्ड बनता है तो यह क्षेत्र के कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, भाषा-कला-संस्कृति-पर्यटन सम्बंधित प्रोजेक्ट्स, बाढ़-सुखाड़-आपदा सम्बंधित प्रोजेक्ट्स, सोशल रिफॉर्म्स जैसे विषयों पर काम कर सकती है।
प्रश्न: भारत के संवैधानिक ढांचे में इसका क्या अस्तित्व है ?
उत्तर:- भारतीय संविधान के आर्टिकल 371 के अनुशार डेवलपमेंट बोर्ड्स का गठन किया जाता है। आर्टिकल 371 और इसके सब-आर्टिकल्स के तहत किसी ख़ास पिछड़े और बैकवर्ड क्षेत्र के लिए अलग से डेवलपमेंट बोर्ड बनाने का प्रोविजन है। इस आर्टिकल के 371 a से लेकर 371 J तक अमेंडमेंटस हैं जिसके तहत असम, नागालैंड, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रा-प्रदेश जैसे राज्यों में सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड बनाएं गए हैं। इन डेवलपमेंट बोर्ड्स का गठन स्पेशल आर्थिक पैकेज, राज्य के बजट में न्यायपूर्ण बजट अलोकेशन और विशेष केंद्रीय मदद से क्षेत्र के लिए ज्यादा फंड्स लगाकर विकास कार्य में तेजी के उद्देश्य से किया गया है। आर्टिकल 371 मूलतः गुजरात और महाराष्ट्र के कच्छ, सौराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाड़ा के लिए अलग बोर्ड्स की जरुरत के लिए बनाया गया था पर इसमें 9 अमेंडमेंटस करके अन्य राज्यों सम्बंधित प्रोविजन्स भी इसमें जोड़े गए हैं। आर्टिकल 371A के तहत नागालैंड को स्पेशल प्रोविजन, 371B के तहत असम को, 371C के तहत मणिपुर को, 371D & 371E के तहत आंध्रा प्रदेश को, 371F के तहत सिक्किम को, 371G मिजोरम को, 371H अरुणाचल प्रदेश को, 371I के तहत गोवा को स्पेशल प्रोविजन दिया गया है। हाल के दिनों में 371J के तहत हैदराबाद-कर्णाटक के ६ बैकवर्ड जिलों के विकास के लिए स्पेशल सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड की मंजूरी दी गयी है और उन्हें सफ्फिसिएंट फंड्स अलोकेशन के व्यवस्था की बात हुई है।
प्रश्न: डेवलपमेंट बोर्ड किन जगहों पर है और क्या स्थिति है ?
उत्तर:- भारत के कई राज्यों में सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड है, महाराष्ट्र में तीन विदर्भ-मराठवाड़ा-शेष महाराष्ट्र, गुजरात मे तीन कच्छ-सौराष्ट्र-शेष गुजरात, हैदराबाद-कर्नाटक के ६ जिलों में एक नया बना हुआ सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड, और नार्थ ईस्ट राज्यों में अलग-अलग डेवलपमेंट बोर्ड। नार्थ ईस्ट राज्यों में दो तरह के डेवलपमेंट बोर्ड हैं, एक संविधान के सिक्स्थ शेड्यूल के द्वारा बनाए गए बोर्ड्स और दुसरा राज्य सरकारों द्वारा स्थानीय ट्रायबल्स के लिए स्पेशल सेपरेट बोर्ड्स। सिक्स्थ शेड्यूल से केंद्र के द्वारा बनाया गया बोर्ड्स
असम-
- Bodoland Territorial Council(BTC)/2003
- Karbi Anglong Autonomous Council(KAAC)/1951;1976
- Dima Hasao District Autonomous Council(DHDAC)1951;1970;2014
मेघालय-
- 1.Khasi Hill sAutonomous District Council(KHADC)/1972
- Garo Hills Autonomous District Council(GHADC)/1972
- Jaintia Hills Autonomous District Council(JHADC)/1972
त्रिपुरा-
- Tripura Tribal Areas Autonomous District Council(TTAADC)/1982
मिजोरम-
- Chakma Autonomous District Council(CADC)/1987
- Mara Autonomous District Council(MADC)/1987
- Lai Autonomous District Council(LADC)/१९८७
ऐसे ही राज्यों के बनाए बोर्ड्स भी साथ ही साथ फंक्शन कर रहे हैं।
प्रश्न: कैसे फॉर्म होती है ? एंड कैसे रन करती है ?
उत्तर:- अलग-अलग जगह के डेवलपमेंट बोर्ड्स का फार्मेशन भिन्न प्रकार से किया गया है. महाराष्ट्र के विदर्भ-मराठवाड़ा और शेष महाराष्ट्र के तीनों डेवलपमेंट बोर्ड का कम्पोजिशन ये है
Composition of Development Boards. –
- Each Development Board shall consist of members not exceeding 7 including the Chairman all of whom, shall be appointed by the Governor.
(a) One member of the Maharashtra State Legislature from the area of the respective Development Board
(b) One member of a local authority from the area of the respective Development Board
(c) Three experts from amongst persons, who (i) have special knowledge of the planning process, finances and accounts of Government; or
(ii) have had a wide experience in financial matters and administration; or
(iii) have special knowledge in different fields like irrigation, public health, public works, industries, agriculture, education or employment;
(d) A Commissioner of Revenue Division from the area of respective Development Board
(e) An Officer of the State Government not below the rank of an Additional Commissioner of a Revenue Division from the respective Development Board. - The Officer referred to in sub-clause (e) of clause (1) shall beMember Secretary of each respective Development Board.
इसके अलावा अन्य तरीकों से भी डेवलपमेन्ट बोर्ड कौंसिल का निर्माण किया जा सकता है.
प्रश्न: मिथिला कैसे डेवलपमेंट बोर्ड की स्वाभाविक अधिकारी है ?
उत्तर:- ‘मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड (MDB)’ क्षेत्र के 20 पिछड़े जिलों की जरूरत और वाज़िब हक़ है। देश के सबसे पिछड़े जिलों की लिस्ट में अररिया, कटिहार, पूर्णिया, बांका, जमुई, बेगुसराय, शिवहर, खगरिया, सुपौल, किशनगंज आदि का नाम सबसे ऊपर आता है। एक आम मैथिल सलाना अन्य जगह के एक औसत भारतीय का एक तिहाई कमाता है, पर कैपिटा इनकम की दृष्टि से एक मैथिल किसी औसत मराठी का चौथाई, गुजराती का पांचवां, दिल्ली का दशवां, केरला का छठवाँ हिस्सा कमाता है। मिथिला क्षेत्र के जिलों का जीडीपी पर कैपिटा नोर्थईस्ट राज्यों के औसत से भी लगभग आधा है।
क्षेत्र में न एयरपोर्ट है, न सुव्यवस्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय या केंद्रीय अस्पताल, न इंफ्रास्ट्रक्चर न रोजगार, न हैवी इंडस्ट्री न खाद्य-डेयरी-मत्स्य-कृषि आधारित उद्योग या न ही टेक्निकल इंडस्ट्री। कृषि बन्द हो रही है, लोग पलायन कर रहे हैं, न कला-संस्कृति-भाषा बढ़ पाई और न टूरिज्म। यदि महाराष्ट्र में मराठवाड़ा, विदर्भ और गोरखालैंड, हैदराबाद, मिज़ोरम आदि जैसे जगहों पर पिछड़े जिलों के लिए ऑटोनॉमस डेवलपमेंट बॉडी बन सकता है तो मिथिला को उसका हक़ क्यों नहीं दिया जा रहा है ?
सेपरेट डेवलपमेंट बोर्ड फ़ॉर मिथिला एक ऐसा विचार है मेरे हिसाब से जो मिथिला के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक-वास्तविक और वैकाशिक हालात एवं जरूरत पर एकदम फिट बैठता है। अभी हाल में ही प्रेजिडेंट ने हैदराबाद-कर्नाटक के 6 पिछड़े जिलों के लिए एक डेवलपमेंट बोर्ड के गठन की मंजूरी दी है। गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन भी कुछ ऐसे ही फंक्शन करता है। महाराष्ट्र में भी विदर्भ, मराठावाड़ा और शेष महाराष्ट्र नामित तीन डेवलपमेंट बोर्ड को मंजूरी है जो अपने अपने इलाके के डेवलपमेंट सम्बंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्य से स्वतंत्र होके या उसके कॉर्डिनेशन में काम करता है।
ये डेवलपमेंट बोर्ड सामान्यतया राज्य के गरीब इलाक़ों या विशिष्ट पहचान वाले इलाकों के लिए बनाया जाता है ताकि विकास समावेसी हो और उस क्षेत्र की कम्पेरेटिव सहभागिता रह पाए। 6 करोड़, 20 जिला, अलग भाषा-संस्कृति कुल मिलाकर मिथिला को अलग डेवलेपमेंट कॉउंसिल के लिए एकदम उपयुक्त बनाता है। मिथिला के जिलों के स्थिति का कम्पेरेटिव विश्लेषण कीजिए तो हालात मुंह खोल के सामने आ जाएगा। करीब सिर्फ 37.5 प्रतिशत एवरेज लिटरेसी रेट है मिथिला के 20 जिलों का, गरीबी-भुखमरी-कुपोषण-बेरोजगारी-पलायन-उद्योग धंधों और मिलों का बन्द होना, शिक्षा-स्वास्थ्य-संचार सुविधाओं की कमी, कृषि-यातायात-मानवविकास-जीवन स्तर का निचले स्तर पर होना, ये सब जरूरत का एहसास करवाता है एक ऐसे स्वतंत्र बोर्ड या काउंसिल की जो सिर्फ मिथिला के विकास पर काम करे। यदि केंद्र कोई सहायता या विशेष पैकेज भेजता है तो ये इस बोर्ड को मिले काम करने को न की राज्य सरकार उसे कहीं और खर्च कर दे।
प्रश्न: इसके स्कोप्स ? मिथिला में ये क्या-क्या काम कर सकती है और किन क्षेत्रों में डायरेक्ट फायदा होगा ?
उत्तर:- मिथिला में डेवलपमेंट बोर्ड क्षेत्र के २०+ जिलों के लिए विशेष वैकासिक प्रोजेक्ट्स तैयार कर सकती है। मसलन राज्य सरकार कभी बाढ़ जैसे समस्या के निदान के लिए प्रयास नहीं करती लेकिन यदि अपना डेवलपमेंट बोर्ड रहेगा तो जरूर इसपर ठीक से काम किया जा सकता है. क्षेत्र के खेतों में पानी नहीं पहुँचती और सिंचाई की सारी योजनाएं असफल हुई है क्योंकि बिहार सरकार के लिए सिर्फ मिथिला पर विशेष ध्यान देना संभव नहीं है लेकिन यदि अपना डेवलपमेंट बोर्ड रहेगा मिथिला का तो वो इन चीजों पर आसानी से काम कर सकती है। एक और उदाहरण, मिथिला का लोक-कला, संस्कृति, भाषा-इतिहास और पर्यटन मिलकर एक बड़ा वैकासिक इंडस्ट्री बन सकता है लेकिन बिहार सरकार अपनी मजबूरियों के कारण इस पर ध्यान नहीं दे पाती, जबकि यदि अपना डेवलपमेंट बोर्ड रहेगा तो इसके लिए शानदार प्लानिंग और एक्सेक्शयून लोकली किया जा सकता है. ऐसे ही कृषि आधारित उद्योग, डेयरी, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, अन्य ग्रामीण व् कुटीर उद्योगों के लिए अलग से प्लान किया जा सकता है और एक बेहतर रिजल्ट सामने आ सकता है. मिथिला के बंद पड़े मीलों को पुनः खुलवाने के लिए ऐसे लोकल डेवलपमेंट बोर्ड बेहतरीन माध्यम बन सकता है, मिथिला में नए इंडस्ट्री लगने-सॉफ्टवेयर पार्क्स-एजुकेशनल हब बनाने जैसी योजनाओं के लिए मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड सबसे बेस्ट और मुफीद माध्यम बन सकता है। ये बोर्ड लोकली काम करेगी इसलिए जिम्मेवारी तय करना आसान होगा और लोग दवाब बनाकर आसानी से काम भी करवा सकते हैं।
प्रश्न: क्या यह राज्य के साथ टकराहट का कारण बन सकती है ?
उत्तर:- नहीं, एकदम नहीं. ये एक तरह से क्षेत्र-विशेष के केवल वैकासिक कार्यों के लिए बॉडी होगी जिसका प्रशासन व् अन्य सरकारी कार्यों में दखल एकदम नहीं के बराबर होगी। एक उदाहरण से समझें की जैसे डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन के होने के बावजूद किसी शहर जैसे की दरभंगा में ‘नगर-निगम’ भी है स्थानीय समस्याओं के सुलझाने के लिए, इसका अपना अधिकार और दखल क्षेत्र है और उसके बाहर कोई टकराहट नहीं होती. उसी तरह मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड राज्य से किसी प्रकार के टकराहट का कारण नहीं बन सकती क्योंकि इसका अपना एक अधिकार और दायित्व क्षेत्र ही होगा जिसके बाहर उनका कोई दखल नहीं होगा. इनका अपना कोई प्रशासनिक ढांचा या अमला नहीं होता बल्कि बस यह यह क्षेत्र के डेवलपमेंट सम्बन्धी विशेष योजनाएं बना सकती है और क्रियान्वयन व् देखरेख कर सकती है. डेवलपमेंट बोर्ड बनने के स्थित्ति में शेड्यूल ६ के अनुशार बिहार सरकार को निश्चित तौर हर सालाना बजट का एकतय हिस्सा मिथिला पर खर्च करना पड़ेगा। और इसके साथ-साथ सेंटर के तरफ से आने वाले फंड्स जो मिथिला आधारित रहेंगे वो डायरेक्ट इस बोर्ड के पास आ सकता है और राजय सरकार उसे कहीं और खर्च नहीं कर सकती.
प्रश्न: क्या इससे मिथिला राज्य निर्माण आंदोलन को नुक्सान होगा ? क्या इससे लोकल करप्शन के मौकों में वृद्धि होगी ?
उत्तर:- नहीं, एकदम नहीं। हाँ, फ़ायदा जरूर होगा। राज्य भाषाई आधार पर बनते हैं जबकि डेवलपमेंट बोर्ड केवल वैकासिक पैमाने पर. मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड की मांग इसलिए की जा रही हैं क्योंकि ये २०+ जिला विकास में एकदम पीछे छूट गया है और इनपर विशेष ध्यान दिए जाने की जरुरत है. जबकि राज्य के मांग के लिए इतिहास से ही जो आंदोलन अलग-अलग तरीकों से हो रही है वो भाषाई, ऐतिहासिक और अपने अलग पहचान को लेकर है. राज्य की मांग इसलिए की जा रही है क्योंकि मिथिला की पौराणिक काल से ही अपनी एक अलग पहचान और राज्य रही है। मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड के गठन से क्षेत्र के विकास में वृद्धि होगी और ज्यादा बेहतर ग्राउंड बनेगा राज्य का। उससे भी बड़ी बात की मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड के गठन से मिथिला के २०+ जिलों की स्वीकार्यता होगी और ये एक बड़ी विजय होगी क्योंकि अभी मिथिला को अलग-अलग हिस्सों में बांटकर लगभग तोड़ दिया गया है। वज्जीलाञ्चल-अंगिकांचल-सीमांचल-पूर्वांचल-उत्तर बिहार जैसे शब्दों ने मिथिला को लगभग भावनात्मक रूप से विखंडित कर दिया है। मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड इन सब चीजों का तोड़ बनकर मिथिला को पुनः जोड़ेगा.
लोकल करप्शन सरकारी देखरेख के अभाव में होता है, करप्शन तो नगर-निगम, पुलिस स्टेशन-डीएम ऑफिस और विधायिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका तक में है तो क्या इन सबको बंद कर दिया जाए ? मिथिला डेवलपमेंट बोर्ड के गठन के बाद क्षेत्र के विकास से सम्बंधित प्रोजेक्ट्स के लिए फंड्स आएगा तो ये संभावित जरूर है की घोटालों व् वित्तीय गड़बड़ी की आशंका रहेगी पर समुचित देखरेख व् एकाउंटेबिलिटी के दम पर इसे आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है।
मिथिला विकास बोर्ड मिलने से हम क्या करेंगे ?
- उत्तर बिहार के 20 जिला को विकसित कर मिथिला की कल्पन
- AIIMS, IIT, IIM, IT & Technology Park, Textile Park की स्थापना
- स्पेशल एजुकेशन ज़ोन (SEZ) व हरेक जिला में मेडिकल व इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना
- बंद उद्योग धंधा का रीवाइवल (चीनी, जुट, पेपर, खाद, सूत, खादी भंडार, सिल्क उद्योग )
- बाढ़ और सुखार से मुक्ति के लिये कमिटी का गठन
- सेंट्रल यूनिवर्सिटी की स्थापना व उपलब्ध यूनिवर्सिटी में अच्छी सुविधा
- हवाई अड्डा व बेहतर रेलवे-रोड नेटवर्क
- टूरिज़्म, कल्चर और भाषा के सम्बर्हन हेतु बजट
- कृषि आधारित उद्योग, डेयरी, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन आदि के लिये व्यापक कार्ययोजना
- महिला शक्ति का उपयोग हेतु एक व्यापक मैन्युफैक्चरिंग हब
पुरे मिथिला में कृषि पर लगभग 84 प्रतिशत लोग निर्भर हैं लेकिन एग्रीकल्चर ग्रोथ रेट सिर्फ 18 प्रतिशत ही हैं
मिथिला में 14 चीनी मिल, 6 जुट मिल, 1 पेपर मिल, 2 सूत मिल में से अभी सिर्फ 3 चीनी मिल कार्यरत हैं बंकि सभी बंद हैं
चीनी मिल के नाम पर पिछले 5 वर्षों में महाराष्ट्र को 22 हजार करोड़ रुपया दिया गया लेकिन मिथिला को एक फूटी कौड़ी नहीं
बिहार की कुल बजट 2 लाख 8 हजार करोड़ हैं जो दिल्ली के बजट के 3 गुना से भी ज्यादा हैं लेकिन हमारे सरकार इतना पैसा का करती क्या हैं ? 25 हजार करोड़ रूपये शिक्षा पर खर्च किये जा रहे हैं लेकिन सिर्फ 33 प्रतिशत बच्चे ही सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं, ऐसा क्यों ? 8 हजार करोड़ रूपये हर वर्ष बिजली के लिए खर्च किये जा रहे हैं लेकिन बिजली की स्थिति किसी से छुपा हुआ नहीं हैं
अब वक्त आ गया हैं की हम सवाल करे और अपने प्रतिनिधि से जवाब मांगे आप सभी से अनुरोध हैं की मिथिला विकास बोर्ड के मांग को हर प्लेटफोर्म पर उठाये और मिथिला स्टूडेंट यूनियन के मांग को मजबूत करें I